एक पिता और पुत्र की प्रेरक कहानी ( The inspired story of a father & son )
नमस्कार दोस्तों आज मैं ऐसे कहानी के बारे में वर्णन करने जा रहा हूँ ,जो पिता और पुत्र पर आधारित है और ये कहानी आपके जीवन की सफलता के लिए बहुत प्रेरणादायक और जीवन में उन्नति का मार्गदर्शन करेगी, इसलिए आइये नीचे देखते है |
एक पिता और पुत्र की प्रेरक कहानी – एक समय की बात है , एक गाँव में एक मूर्तिकार रहता था और वह बहुत ही मेहनती और काम के प्रति एकाग्रचित था , वह बहुत ही खुबसूरत मूर्ति बनाया करता था और वह इस काम से बहुत अच्छा कमा लेता था , उसका एक बेटा हुआ उस बच्चे ने बचपन से ही मुर्तिया बनानी शुरू कर दी बेटा भी बहुत ही अच्छा मुर्तिया बना लेता था |
बाप अपने बेटे की कामयाबी पर बहुत खुश होता था , लेकिन वह अपने बेटे की मुर्तिया में कोई न कोई कमियां हर बार निकाल ही देता था वह कहता था , बहुत अच्छा किया लेकिन अगली बार इस कमी को दूर करने की कोशिश करना , बेटा भी कोई शिकायत नहीं करता था , वह बाप की सलाह पर अमल करते हुए मूर्तियों को और बेहतर करता रहा इस लगातार सुधार की वजह से बेटे की मुर्तिया दिन प्रतिदिन और बेहतर होते गया और उसकी मुर्तिया बाप से भी अच्छी बनने लगी और ऐसा समय आ गया की लोग बेटे की मूर्तियों को ज्यादा पैसा देकर खरीदने लगे, जबकि बाप की मूर्तियों उसके पहले वाले कीमत पर ही बिकती रही बाप अब भी बेटे की मूर्तियों में कमियां निकाल ही देता था लेकिन फिर भी अपने मूर्तियों सुधार कर ही लेता था |
एक समय ऐसा भी आया की बेटे के सब्र ने जवाब दे दिया और बाप जब कमियां निकाल रहा था तो बेटा बोला आप तो ऐसे कहते है की जैसे आप बहुत बड़े मूर्तिकार हैं, अगर आपको इतनी ही समझ होती तो आपकी मूर्तियाँ इतनी कम कीमत में नही बिकती, मुझे नही लगता की आपकी सलाह लेने की जरुरत है हमें, बाप ने ये बेटे की बात सुनी तो वह अपने बेटे में कमियां निकलना और सलाह देना बंद कर दिया |
कुछ महीने तो वह लड़का खुश रहा लेकिन उसने बाद में नोटिस किया की लोग अब उसकी मूर्तियों की तारीफ उतनी नहीं करते जितनी की पहले करते थे और उसकी मुर्तियां का दम बढ़ना भी बंद हो गया, शुरू में तो बेटे को समझ में नही आया और बाद में वह अपने बाप के पास गया और उसे समस्या के बारे में बताया, फिर बाप ने बेटे की बात बहुत शांति से सुना जैसे की उसे पहले से ही पता हो की ऐसा भी होने वाला है, बाप ने कहा की आज से कई साल पहले मैं भी इस हालत से गुजरा था तो बेटे ने बोला की आपने मुझे पहले क्यों नही समझाया, बाप ने जवाब दिया की तुम समझना नही चाहते थे |
मैं जनता हूँ की तुम्हारी जितनी अच्छी मुर्तियां है मैं उतनी अच्छी मुर्तियां नहीं बनाता और ये भी हो सकता है की मूर्तियों के बारे में मेरी सलाह गलत हो और ऐसा भी नही है की मेरे सलाह की वजह से तुम्हारी मूर्तियाँ बेहतर बनी है लेकिन जब तुम्हारी मूर्तियाँ में कमियां देखता था तब तुम बनायीं मुर्तिया से संतुष्ट नही होते थे और तुम खुद को बेहतर करने की कोशिश करते थे और वही बेहतर होने की कोशिश तुम्हारी सफलता का कारन था, लेकिन जिस दिन तुम अपने काम से संतुष्ट हो गये और तुमने ये भी मन लिया की इसमें और कोई बेहतर होने की गुंजाईश ही नहीं है, तुम्हारी क्रोध भी रुक गई, लोग हमेशा तुमसे बेहतर की उम्मीद करते हैं, और यही कारन है की अब तुम्हारी मूर्तियाँ के लिए तारीफ नही होती और नहीं उनके लिए ज्यादा पैसे मिलते है |
यह बात सुनकर बेटा थोड़ी देर चुप रहा , फिर उसने सवाल किया तो अब मुझे क्या करना चाहिए बाप ने एक लाइन में जवाब दिया ,असंतुष्ट होना सिख लो मॉल लो की तुममें बेहतर होने की गुंजाईश बाकि है, यही एक बात तुम्हे हमेशा बेहतर होने के लिए प्रेरित करती रहेगी, और अगर यह बात मन में सोच लो तो तुम्हे एक दिन मंजिल पाने से कोई नहीं रोक सकता है |
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